किस्से चरण सिंह के: विधानसभा से घर पैदल जाते थे, अपना खर्च खुद ही उठाते थे; निधन के समय खाते में थे 470 रुपये

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान से नवाजा जाएगा। शुक्रवार को भारत सरकार ने तीन लोगों को भारत रत्न देने का एलान किया है जिनमें चरण सिंह का नाम भी है। चरण सिंह की पहचान किसान नेता के तौर पर रही है। उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था। चरण सिंह का लंबा सियासी सफर भी रहा, लेकिन सादगी उनके साथ हमेशा रही। किसान नेता के सादगी के किस्से अक्सर चर्चा में रहे हैं। 

आइये जानते हैं चरण सिंह से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में…

विरोध के कारण कॉपरेटिव फार्मिंग नहीं लागू कर पाए थे पंडित नेहरु 
छपरौली से आने वाले नेता चौधरी नरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘चौधरी साहब ने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। 1959 में नागपुर के अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू कॉपरेटिव फार्मिंग को लागू करना चाहते थे, मगर चौधरी साहब ने इसका खुलकर विरोध किया। अधिवेशन में ही इसके नुकसान बताए। इसे किसान विरोधी बताया। प्रस्ताव पास होने के बावजूद भी पंडित नेहरु इस कानून को लागू करने का साहस नहीं जुटा पाए थे। उनका मत था कि किसान, गांव खुशहाल होंगे, तो देश खुशहाल होगा।’

जब चरण सिंह ने नहीं ली मंत्री पद की शपथ 
चौधरी चरण सिंह जमीन से जुड़े नेता थे। समझौतावादी न होने के कारण उन्हें सियासत की डगर पर काफी संघर्ष करना पड़ा। सुचेता कृपलानी और चंद्रभानु गुप्ता जैसे मुख्यमंत्रियों से चरण सिंह की नहीं बन पाई। वर्ष 1967 में चुनाव के बाद कांग्रेस ने चंद्रभानु गुप्ता को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। चरण सिंह की शर्त थी कि दागी नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर रखा जाए। केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर सहमति भी दे दी, पर चंद्रभानु ने मंत्री बनाए जाने के लिए जिन नामों की सूची तत्कालीन राज्यपाल को सौंपी उनमें वे दो चेहरे भी शामिल थे, जिन पर चरण सिंह को एतराज था। नतीजतन चरण सिंह ने मंत्री पद की शपथ ही नहीं ली। 

पैदल ही विधानसभा से घर आते-जाते
मंत्री थे नहीं सो गाड़ी कहां से होती। एक संस्मरण में जिक्र है, ‘चौधरी साहब पैदल आते-जाते, पर उनके पूर्व निजी सचिव तिलक राम शर्मा को इस पर काफी कष्ट होता। वह किसी न किसी अफसर से आग्रह कर चौधरी साहब के घर भेजते और वहां जाकर उनसे कहते, ‘चौधरी साहब! मैं उधर ही जा रहा हूं। चलिए छोड़ दूं।’ कई दिन यह सिलसिला चला तो उन्हें तिलक राम पर शक हुआ और उन्होंने सख्ती से उन्हें मना कर दिया। अब वह रोज पैदल ही विधानसभा से घर आते-जाते।

खुद के जेब से भरते थे पेट्रोल और टेलीफोन का बिल
चरण सिंह ने अपने काम और व्यवहार से आने वाली पीढ़ी के लिए मानक स्थापित किए। बात उन दिनों की है जब चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मॉल एवेन्यू स्थित बंगले में रहते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि घर आया रिश्तेदार किसी को फोन कर रहा है। वह उससे तो कुछ बोले नहीं, लेकिन शाम को निजी सचिव को आदेश हुआ कि बंगले पर टेलीफोन के पास एक रजिस्टर रखवा दिया जाए, जिस पर फोन करने और आने का ब्यौरा दर्ज हो।

एक पुस्तक के संस्मरण से पता चलता है, ‘निजी सचिव ने कहा, मुख्यमंत्री होने के नाते आपके व्यय की कोई सीमा नहीं है। इसलिए रजिस्टर रखवाने की कोई जरूरत नहीं लगती।’ जवाब में चरण सिंह बोले, ‘मुख्यमंत्री को असीमित अधिकार का मतलब यह तो नहीं कि सरकारी धन निजी काम पर खर्च हो।’ वह रजिस्टर रखवा कर माने। इसके बाद हर महीने रजिस्टर से मिलाकर सरकारी काम के लिए हुए टेलीफोन का बिल निकालकर शेष का भुगतान चौधरी चरण सिंह निजी खाते से करते।

निजी दौरे का खर्च अपने खाते से चुकाते थे
मुख्यमंत्री बने हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें एक निजी समारोह में भाग लेने जाना पड़ा। वहां से लौटकर आए तो ड्राइवर से कहा कि इसे अलग नोट कर लेना। ड्राइवर उन्हें गौर से देखने लगा तो बोले, ‘सरकारी दौरे छोड़कर निजी कार्यक्रमों में जाने पर वाहन का पेट्रोल पर होने वाला खर्च मेरे निजी खाते से चुकता किया जाएगा।’ 

निधन के समय खाते में 470 रुपये थे 
चरण सिंह दो बार मुख्यमंत्री और एक बार देश के प्रधानमंत्री रहे। लंबा राजनीतिक जीवन व्यतीत करने के बाद भी उन्होंने अपने लिए संपत्ति नहीं बनाई। दिग्गज नेता के निधन के समय उनके खाते में मात्र 470 रुपये थे।