वाराणसी। ज्ञानवापी परिसर (सील वजूखाना को छोड़कर) के एएसआई से सर्वे के लिए हिंदू पक्ष ने मई 2022 के अधिवक्ता आयुक्त के सर्वेक्षण को अपनी दलीलों का ठोस आधार बनाया। इससे पहले हिंदू पक्ष ने कहा कि आदिविश्वेश्वर का मंदिर मुगल शासक औरंगजेब के फरमान से वर्ष 1669 में ध्वस्त किया गया था।
मंदिर के खंडहर को परिवर्तित करके उसका उपयोग मुस्लिम पक्ष ने करना शुरू कर दिया। मंदिर के ऊपर एक अधिरचना का निर्माण किया। भगवान आदिविश्वेश्वर के मंदिर की पुर्नस्थापना के लिए उनके भक्त वर्ष 1670 से आज तक लड़ाई लड़ रहे हैं। मगर, दुर्भाग्य से उन्हें न्याय नहीं मिल पाया।
अदालत में हिंदू पक्ष ने कहा कि अधिवक्ता आयुक्त के सर्वेक्षण में स्पष्ट हो चुका है कि कथित ज्ञानवापी मस्जिद एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्तंभों पर खड़ी है। इमारत के दक्षिणी और उत्तरी भाग में तहखाने के स्तंभों पर संस्कृत श्लोक उत्कीर्ण हैं। भवन के विभिन्न स्थानों पर स्वस्तिक चिह्न विद्यमान हैं। हिंदू देवी-देवताओं के उप मंदिर रखने के स्थान इमारत में मौजूद हैं। मां शृंगार गौरी का विग्रह इमारत के पश्चिमी हिस्से में मौजूद है। तहखाने के अंदर इमारत के उत्तरी किनारे पर स्थित कुछ स्तंभों में घंटियां मिलीं हैं, जो हिंदू मंदिर की वास्तुकला का हिस्सा हैं।
इमारत के उत्तरी तरफ के तहखाने में मौजूद स्तंभों की बार-बार पुताई कर उनके मूल चरित्र को छुपाया गया है। इमारत की पहली मंजिल के खंभों के मूल चरित्र को छिपाने के लिए उन्हें बार-बार रंगा गया है। कथित मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे से एक खोखली आवाज आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कृत्रिम निर्माण से ढका हुआ है, जिसे केवल एएसआई आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से पता लगा सकता है। दक्षिणी हिस्से में कुछ कृत्रिम दीवारें मौजूद हैं। इसलिए निर्माण की प्रकृति को समझने के लिए एक विस्तृत विशेषज्ञ वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता है।
Gyanvapi controversy – फोटो : Social Media
अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले का दिया हवाला
हिंदू पक्ष ने कहा कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एक आदेश पारित करके एएसआई को यह पता लगाने के लिए नियुक्त किया था कि क्या विवादित स्थल पर कोई मंदिर या धार्मिक निर्माण था। यदि यह कभी अस्तित्व में था तो खोदाई द्वारा नींव का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा मोहम्मद सिद्दीकी बनाम सुरेश दास के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्माण के मामले में एएसआई के कामकाज, शक्ति और अधिकार क्षेत्र पर जोर दिया है।
एएसआई देश का एक महत्वपूर्ण संस्थान
हिंदू पक्ष ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देश का प्रमुख संस्थान है। यह निर्माण की आयु व प्रकृति का पता लगाने के लिए जीपीआर सर्वेक्षण, उत्खनन या डेटिंग और अन्य वैज्ञानिक तरीकों का संचालन करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और उपकरणों से सुसज्जित है। एएसआई इस क्षेत्र के कई अन्य विशेषज्ञों यानी आईआईटी रूड़की, आईआईटी कानपुर, बीएसआईपी (लखनऊ), इंटर-यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर (यूएसी) की भी मदद ले सकता है।
मुकदमे के निपटारे में मदद मिलेगी
हिंदू पक्ष ने कहा कि आवेदन में मांगी गई राहत से किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि उपरोक्त मुकदमे के निपटारे में मदद मिलेगी। यदि आवेदन में मांगी गई राहत को पूरा करने के लिए किसी भी खर्च की आवश्यकता होती है, तो इसे वहन किया जाएगा।
हिंदू पक्ष ने दावा किया कि ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग है।
मुस्लिम पक्ष
औरंगजेब के फरमान से नहीं तोड़ा गया था मंदिर
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से अदालत में कहा गया कि वर्ष 1669 में बादशाह औरंगजेब के फरमान के अनुपालन में किसी भी मंदिर को नहीं तोड़ा गया। वाराणसी में दो काशी विश्वनाथ मंदिर की अवधारणा कभी नहीं रही। विवादित भूमि पर स्थित आलमगिरी/ज्ञानवापी मस्जिद है, जो हजारों वर्षों से अस्तित्व में है। यह इमारत पहले भी मस्जिद थी और आज भी मस्जिद ही है।
मसाजिद कमेटी की ओर से कहा गया कि राखी सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य के मुकदमे में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की कोर्ट ने मनमाने ढंग से एडवोकेट कमिश्नर द्वारा स्पॉट निरीक्षण का आदेश पारित किया गया। मौका-मुआयना किया गया, लेकिन कार्रवाई के दौरान कोई भी शिवलिंग नहीं मिला। जो संरचना मिली है, वह स्प्रिंकलर (फव्वारा) है। आयुक्त की रिपोर्ट का निस्तारण आज तक नहीं किया गया है। सबूत इकट्ठा करने के लिए कोई कमीशन जारी नहीं किया जा सकता, इसलिए एएसआई से सर्वेक्षण करने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता। वादीगण को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए।
वादी साक्ष्य एकत्र करना चाहते हैं
मसाजिद कमेटी ने कहा कि दरअसल, सर्वे के आवेदन पत्र की आड़ में वादी साक्ष्य एकत्र करना चाहते हैं, जबकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता है। एएसआई सर्वे के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बीते 12 मई के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय ने 19 मई को रोक लगा दी है।
अयोध्या मामले से इस केस की तुलना नहीं कर सकते
मसाजिद कमेटी ने कहा कि वर्तमान मामले की तुलना अयोध्या प्रकरण से नहीं की जा सकती है। क्योंकि, इस मुकदमे में आज तक मुद्दे तय नहीं किए जा सके हैं। किसी भी पक्ष ने कोई मौखिक साक्ष्य पेश नहीं किया है। अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय केवल उस मामले के तथ्यों में प्रासंगिक है। वह इस मामले में प्रासंगिक नहीं है। आलमगिरी मस्जिद/ज्ञानवापी मस्जिद पर कभी भी किसी अन्य संस्था या व्यक्ति का कब्जा नहीं था। इस पर सदैव मुसलमानों का कब्जा रहा है। मस्जिद आलमगिरी/ज्ञानवापी का निर्माण किसी हिंदू मंदिर की नींव पर नहीं किया गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है
सर्वेक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है
मसाजिद कमेटी ने कहा कि सर्वेक्षण की अनुमति दी गई तो मस्जिद आलमगिरी/ज्ञानवापी ढह सकती है। मूल्यवान साक्ष्य नष्ट हो सकते हैं। यह वाद वादी पक्ष को मां शृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान की पूजा के अधिकार की घोषणा के लिए दायर किया गया है। इसलिए सर्वेक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आवेदन अस्वीकार किया जा सकता है
मसाजिद कमेटी ने कहा कि वर्ष 1991 के सिविल मुकदमे में वाराणसी की कोर्ट ने एएसआई से प्लॉट नंबर 9130, 9131 और 9132 का सर्वेक्षण कराने के लिए आदेश पारित किया। जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय का आदेश सुरक्षित है। इन परिस्थितियों में एक ही विषय वस्तु के संबंध में दो अलग-अलग सर्वेक्षण नहीं किए जा सकते। इसलिए, सर्वे का आवेदन अस्वीकार किया जा सकता है।