नई दिल्ली। बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर भेजने की तैयारी तेज हो गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 को लॉन्च वाहन मार्क-III (एलवीएम-3) के साथ सफलतापूर्वक एकीकृत किया है।
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा। इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ के मुताबिक, अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इस बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर चंद्रयान-3 क्या है? अभी इसको लेकर क्या हुआ है? चंद्रयान-3 को एलवीएम3 के साथ क्यों जोड़ा गया है? एलवीएम3 क्या है ? चंद्रयान-3 के उद्देश्य क्या हैं और यह काम क्या करेगा?
चंद्रयान-3 – फोटो : सोशल मीडिया
क्या है चंद्रयान-3 मिशन?
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखेगा, जिसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर होगा।
चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने में असफल हुआ, उन पर फोकस किया गया है।
चंद्रयान -3 का लॉन्च चंद्रयान -2 के लैंडर-रोवर के दुर्घटनाग्रस्त होने के चार साल बाद होने जा रहा हैं। इस मिशन के चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।
Chandrayaan-3 – फोटो : ANI
अभी इसको लेकर क्या हुआ है?
राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बुधवार को बताया कि श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 युक्त एनकैप्सुलेटेड असेंबली को एलवीएम3 के साथ जोड़ा गया। इसरो ने घोषणा की है कि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बना देगा।
चंद्रयान 3 और एलवीएम 3 – फोटो : SOCIAL MEDIA
चंद्रयान-3 को एलवीएम3 के साथ क्यों जोड़ा गया है?
रॉकेटों में शक्तिशाली प्रणोदन प्रणालियां होती हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पर काबू पाकर उपग्रहों जैसी भारी वस्तुओं को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए जरूरी भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। एलवीएम3 भारत का सबसे भारी रॉकेट है। इसका कुल भार 640 टन, कुल लंबाई 43.5 मीटर और पांच मीटर व्यास पेलोड फेयरिंग (रॉकेट को वायुगतिकीय बलों से बचाने के लिए उपकरण) है। प्रक्षेपण यान आठ टन तक पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (LEO) तक ले जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किमी दूर है। हालांकि, जब भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षाओं (GTO) की बात आती है, तो यह केवल लगभग चार टन भार ले जा सकता है। भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा पृथ्वी से काफी आगे लगभग 35,000 किमी तक स्थित है।
एलवीएम3 ने 2014 में अंतरिक्ष में अपनी पहली यात्रा की और 2019 में चंद्रयान -2 भी ले गया। इस साल मार्च में यह LEO में लगभग 6,000 किलोग्राम वजन वाले 36 वनवेब उपग्रहों को ले गया, जो कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने की अपनी क्षमताओं को दर्शाता है। यह दूसरी बार था जब एलवीएम3 ने व्यावसायिक लॉन्च किया। पहली बार अक्टूबर 2022 में इसने वनवेब इंडिया-1 मिशन को लांच किया था।
LVM3 – फोटो : PTI
एलवीएम3 के घटक क्या हैं?
रॉकेट में कई अलग होने वाले (डिटैचेबल) हिस्से होते हैं। वे रॉकेट को ऊर्जा देने के लिए विभिन्न प्रकार के ईंधन जलाते हैं। एक बार जब उनका ईंधन खत्म हो जाता है, तो वे रॉकेट से अलग हो जाते हैं और गिर जाते हैं। मूल रॉकेट का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही चंद्रयान-3 की तरह उपग्रह के गंतव्य तक जाता है। एलवीएम3 अनिवार्य रूप से एक तीन चरण वाला प्रक्षेपण यान है। इसमें दो ठोस बूस्टर (S200), कोर तरल ईंधन-आधारित चरण (L110) और क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (C25) शामिल हैं।
chandrayan – फोटो : ISRO
चंद्रयान-3 के उद्देश्य क्या हैं और यह काम क्या करेगा?
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 का उद्देश्य, चंद्र सतह पर एक सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है। इसके अलावा, इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोग करना और इंटरप्लेनेटरी मिशन के लिए आवश्यक नई तकनीकों का विकास और प्रदर्शन करना भी इसके अहम उद्देश्य हैं।
मिशन के तहत चंद्रमा के चट्टानों की ऊपरी परत की थर्मोफिजिकल विशेषताएं, चंद्रमा पर भूकंप आने की फ्रीक्वेंसी, चंद्रमा की सतह पर प्लाज्मा वातावरण और उपकरण उतारे जाने वाले स्थान के निकट तत्वों की संरचना का अध्ययन करने वाले उपकरण भेजे जाएंगे। इसरो अधिकारियों के अनुसार, चंद्रयान-3 में एक प्रणोदन मॉड्यूल होगा, जो लैंडर और एक रोवर को लेकर जाएगा और यह उन्हें चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने में सक्षम बनाएगा।
इसरो के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय की पूर्व निदेशक डॉ सीता ने बताया कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र की नर्म सतह पर लैंडर उतरेगा, उससे रोवर बाहर आएगा और चंद्रमा की सतह पर घूमना शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि हमारी अपेक्षा है कि यह चंद्रमा की सतह के गुणों का अवलोकन करे। लैंडर के साथ कुछ ‘पेलोड’ भी जाएंगे और वह भी विभिन्न प्रयोग सतह पर करेंगे तथा जांच करेंगे।
डॉ. सीता के अनुसार, प्रयोग एक चंद्र दिवस के दौरान किए जाएंगे यानी इनमें पृथ्वी के करीब 30 दिन लगेंगे। उन्होंने कहा, करीब 15 दिन बाद रात होगी और तापमान शून्य से 170 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे कम हो जाएगा। अगले 15 दिन में स्थिति बदलेगी। हम कह नहीं सकते कि ठंड का लैंडर पर कितना और क्या असर होगा। लेकिन, शुरुआती 15 दिन बेहद अहम होंगे।