छत्तीसगढ़ः मंत्री रविंद्र चौबे ने राजभवन को याद दिलाई सीमा, कहा – सरकार को जितनी जानकारी देनी थी दे दी,विधेयक साइन करें

कहा - सरकार को जितनी जानकारियां देनी चाहिए थीं, उतनी दे दी गई है, पुनर्विचार कराना है तो विधेयक वापस करतीं|रायपुर,Raipur - Dainik Bhaskar

रायपुर। आरक्षण विधेयकों के राजभवन में अटक जाने से उठा विवाद जारी है। इस बीच संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने इशारों से सीमा की याद दिलाई है। उन्होंने कहा, इस मामले में सरकार को जितनी जानकारियां देनी चाहिए थी, उतनी दे दी गई हैं। अब न्यायालय में मामला जाएगा तो सरकार क्या पक्ष रखेगी ऐसा प्रश्न लाजमी नहीं है। न्यायालय, राज्यपाल के कार्यालय और राज्य सरकार के कार्यों की अपनी सीमाएं हैं।

कैबिनेट के प्रवक्ता और संसदीय कार्य, पंचायत और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्यपाल की ओर से पूछे गए 10 सवालों पर मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, महामहिम को सारा अधिकार है। वे हमारी संवैधानिक प्रमुख हैं। लेकिन हमारा विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ है। अब राजभवन के कार्यों से ऐसा लगता है कि जिस प्रकार की बयानबाजी डॉ. रमन सिंह कर रहे हैं, भाजपा के नेता लोग कर रहे हैं उस प्रकार के प्रश्नों को राज्यपाल सरकार से करेंगी तो मैं समझता हूं कि यह उचित नहीं है।

अगर विधेयक पर पुनर्विचार कराना है तो इन प्रश्नों के साथ विधेयक को लौटा देना चाहिए। विधानसभा को यह लौटाया जा सकता है। हमारी मांग है कि छत्तीसगढ़ के पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण के लिए विधानसभा ने जो विधेयक सर्वसम्मति से पारित कर भेजा है महामाहिम को उसपर हस्ताक्षर करना ही चाहिए।

मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, सरकार को जितनी जानकारियां देनी चाहिए थीं, उतनी जानकारी दे दी गई हैं। अब न्यायालय में कौन सा मसला कितना ठहर सकता है और कितना नहीं इसके बारे में महामहिम को कौन जवाब दे सकता है? उन्होंने कहा, न्यायालय, राज्यपाल के कार्यालय और राज्य सरकार के कार्यों की अपनी सीमाएं हैं। जब न्यायालय में मामला जाएगा तो किस तरीके से हम अपना पक्ष रखेंगे इस तरह के प्रश्न तो लाजमी नहीं हैं।

राज्यपाल ने बुधवार को सरकार से पूछे थे 10 सवाल

राज्यपाल ने 13 दिनों बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वहीं विधेयक को फिर से विचार करने के लिए भी सरकार को नहीं लौटाया। बुधवार को राजभवन ने राज्य सरकार को 10 सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा मानने का आधार पूछा गया है। इसके जरिये राजभवन ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाये हैं। इसके बाद से विधेयकों के कानून बनने की संभावना टलती जा रही है।

कांग्रेस ने विधेयक वापस करने की मांग उठाई

प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने गुरुवार को कहा, आरक्षण संशोधन विधेयक विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित कर राजभवन भेजा है। राज्यपाल को तत्काल इसमें हस्ताक्षर करना चाहिए था। जो 10 सवाल उन्होंने सरकार से पूछे थे यह विधेयक के साथ भेजना था। नियमत: राजभवन उस विधेयक में न एक शब्द जोड़ सकता है और न एक शब्द भी कम कर सकता है। ऐसे में जो भी संशोधन करना है वह विधानसभा को करना है। अगर वह विधेयक राज्य सरकार के पास आता तो वह उनकी शंकाओं का निराकरण करती।

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है

  • 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है। 
  • शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा। 
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की। 
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है। 
  • आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए। 
  • लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया। 
  • सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं। 
  • राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए। 
  • सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई। 
  • 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई। 
  • 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई। 
  • 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही। 
  • 14 दिसम्बर को राजभवन ने सरकार को पत्र लिखकर 10 सवाल पूछे।