नईदिल्ली I गुजरात में दूसरे चरण की वोटिंग से पहले राज्य की BJP सरकार ने गोधरा कांड (2002) में नरमी दिखाने का विरोध किया है. गोधरा में ट्रेन की बोगी जलाए जाने से 59 कारसेवकों की मौत के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से कुछ दोषी पत्थरबाज थे और वे जेल में लंबा समय काट चुके हैं. ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है. लेकिन गुजरात सरकार ने किसी तरह की नरमी न बरतने की बात कही है. इन दोषियों की अपील 2018 से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इस कांड के बाद पूरे राज्य में दंगे भड़क गए थे. गुजरात सरकार ने पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया है.
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि दोषी 17-18 साल से जेल में बंद हैं और कोर्ट पत्थर फेंकने के इन दोषियों को जमानत देने पर विचार कर सकता है. इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है क्योंकि इसके चलते जलती हुई बोगी से पीड़ित बाहर नहीं निकल पाए थे. 2002 गोधरा केस में 31 लोग उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. आग धधक रही थी और पत्थर बरस रहे थे.
हर दोषी की भूमिका की होगी जांच
गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए तुषार मेहता ने कहा कि S-6 कोच में आग लगाए जाने के बाद इन दोषियों ने पत्थर बरसाना शुरू कर दिया था. इनकी मंशा यह थी कि जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर ना निकल सके और बाहर से भी कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए न जा पाए. हालांकि मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे और यह समझा जाएगा कि क्या कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने एसजी को इसकी अनुमति देते हुए 15 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
63 लोगों को किया गया था बरी
गुजरात हाई कोर्ट ने 2017 में 11 लोगों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. इसके साथ ही 20 अन्य लोगों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए केस में 63 लोगों को बरी कर दिया गया था. 27 फरवरी 2022 को गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की कोच में आग लगाए जाने से 59 हिंदुओं की जान चली गई थी, जिसमें 29 पुरुष, 22 महिलाएं और 8 बच्चे थे. इसी साल अगस्त में बिलकिस बानो रेप और मर्डर केस में उम्रकैद की सजा भुगत रहे 11 दोषियों को केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद समय से पहले छोड़ दिया गया.