रायपुरः झुंझुनू की राणी सती दादी विराजी हैं राजा तालाब मंदिर में, 17-18 नवंबर को धूमधाम से मनाया जाएगा जन्मोत्सव 

रायपुर। हर साल की तरह इस साल भी श्री रानी सती मंदिर, राजा तालाब ,रायपुर में दादी जी का जन्मोत्सव (मंगसिर नवमी) 17 और 18 नवंबर 2022 को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा.
मंदिर समिति के अध्यक्ष किशोर ड्रोलिया ने बताया कि हर साल अगहन माह की नवमी तिथि को श्री रानी सती दादी जी का जन्म उत्सव मनाया जाता है.
इस कार्यक्रम के पहले दिन 17 नवंबर, गुरुवार को रात्रि 7:30 बजे ज्योत प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत और 8:00 बजे से भजन गायकों द्वारा भजन सकीर्तन एवं रात्रि 01:00 बजे आरती तथा छप्पनभोग प्रसाद वितरण के साथ किया जाएगा.
मंदिर समिति के कैलाश अग्रवाल ने बताया कि 18 नवंबर, शुक्रवार को सुबह 7:30 बजे जात-धोक पूजा और दोपहर को 2:00 बजे से दादी जी का मंगल पाठ का आयोजन किया गया है, जिस का समापन संध्या 6:30 बजे महा आरती के साथ किया जाएगा.

मालूम हो कि राजधानी के राजा तालाब केनाल रोड पर दादी राणी सती का मंदिर है, जो राजस्थान के झुंझुनू में स्थित प्रसिद्ध मंदिर की तर्ज पर बना है.इस मंदिर में हर साल अगहन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर दादी मां का जन्मोत्सव उत्साह से मनाया जाता है. इसे मंगसिर नवमी कहा जाता है.

दादी राणी सती मंदिर के कैलाश अग्रवाल बताते हैं कि यह मंदिर नारी शक्ति का प्रतीक है, जहां राणी सती दादी को त्रिशूल स्वरूप में पूजा जाता है. दादी के प्रति भक्तों की श्रद्धा इतनी गहरी है कि भक्तगण यहां मन्नत मांगने आते हैं. ऐसा विश्वास है कि यहाँ भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

तीन हजार वर्गफीट में बना भव्य मंदिर

यह मंदिर लगभग तीन हजार वर्गफीट में बना है, जिसमें राजस्थान के कारीगरों ने पत्थरों पर नक्काशी की है. 1975 के आसपास पहले छोटा सा मंदिर था. धीरे-धीरे भक्तों की आस्था बढ़ती गई और भक्तों ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. राजस्थान के मूल निवासी पहले इस मंदिर में गिनती के ही दर्शन करने आते थे. अब यहां हर अमावस्या को दर्शन करने के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. राजस्थान मूल के कई समाज के लोगों द्वारा इष्टदेवी के रूप में राणी सती दादी की पूजा की जाती है.

प्रतिमा का आकार नहीं, त्रिशूल रूप में पूजा

भक्तों में ऐसी मान्यता है कि राणी सती दादी माँ दुर्गा का अवतार हैं. मंदिर में माता की प्रतिमा को कोई रूप नहीं दिया गया है. माता के प्रतिरूप को त्रिशूल स्वरूप में प्रतिष्ठापित किया गया है. माता का मंदिर स्त्री सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है.

सालों से जल रही अखंड जोत 

लगभग 47 साल पहले मंदिर की स्थापना के दौरान राजस्थान के झूंझनू स्थित मुख्य मंदिर से जोत प्रज्वलित करके लाई गई थी. वही जोत सालों से अखंड रूप से प्रज्ज्वलित हो रही है.जब भी कोई भक्त अपने निवास पर मंगल पाठ का आयोजन करता है, तो मंदिर की अखंड ज्योति से ही जोत प्रज्ज्वलित करके ले जाता है.