रायपुर। राज्य के 12 समुदायों को आदिवासी घोषित किए जाने के केंद्र के निर्णय के बाद भाजपा- कांग्रेस के बीच अब श्रेय लेने की होड़ मच गई है। दोनों दलों के अपने- अपने दावे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इसे अपनी कोशिशों का परिणाम बता रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार के साथ पत्राचार की कापी जारी करते हुए कहा, यह कांग्रेस सरकार की लगातार कोशिशों का नतीजा है। इधर इस फैसले से लाभान्वित हो रहे आदिवासी समुदाय के अलग-अलग समूहों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मिलकर आभार भी जताया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय, भाजपा के प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप, भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम सहित कई नेताओं ने आरोप लगाया, आजादी के बाद लगभग 55 सालों तक पंचायतों से पार्लियामेंट तक कांग्रेस का कब्जा रहा। यह मामला 15 साल से लंबित है। अपने शासनकाल में कांग्रेस ने इन जनजाति समूहों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित क्यों रखा? अब जब केंद्र सरकार ने राज्य के 12 जाति समूहों को उनका अधिकार दिया है तो ये जबरिया श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं।
आदिवासी समाज के कुछ प्रतिनिधि डॉ. रमन सिंह का आभार जताने पहुंचे थे।
इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा को घेरा है। उन्होंने कहा, भाजपा ने स्वीकार किया है कि पिछले 15 सालों से मात्रात्मक गलती की वजह से अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने का मामला लंबित था। उस दौरान रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। जब आखिरी बार भी उन्होंने चिट्ठी लिखी तो केंद्र में उनकी ही सरकार थी। तब भी वह नहीं सुधरा। लोग आंदोलन करते रहे। संवरा जनजाति के आंदोलन में मैं खुद ही गया था। हजारों लोग उसमें शामिल थे। अभी फिर से हमने 2021 में इसके लिए पहल की। नीति आयोग की बैठक में इसे उठाया। तब जाकर यह पूरा हुआ है।
नंद कुमार साय और केदार कश्यप ने कांग्रेस पर श्रेय लेने का आरोप लगाया।
भाजपा अब यह कह रही है
पूर्व मंत्री केदार कश्यप और नंद कुमार साय ने कहा, कांग्रेस ने क्या कभी प्रधानमंत्री से मिलकर इन जनजातियों को उनका अधिकार देने आग्रह किया? वे बताएं कि कांग्रेस के किस प्रतिनिधिमंडल ने कभी प्रधानमंत्री से कोई भेंट की? भाजपा नेताओं ने अपने प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 2020 में उनके सांसदों और नेताओं के प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री एवं विभागीय मंत्री से मुलाकात कर इन जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने से जुड़े तथ्यों से अवगत करा दिया था।
कांग्रेस नेता सुशील आनंद शुक्ला ने भाजपा की नीयत को कठघरे में खड़ा किया।
कांग्रेस का अब यह दावा है
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, भाजपा और रमन सिंह नहीं चाहते थे कि इन जाति समूहों को उनके संवैधानिक हक मिले। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस सरकार के प्रयासों और विधि सम्मत की गई अनुशंसा से ही 12 जाति समूहों के लोगो को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री मोदी को इस आशय का पत्र भी लिखा था। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुये भी इन जाति समूहों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिये आंदोलन किया था। स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेश अध्यक्ष रहते हुये सौरा समाज सहित अन्य समाजो के आंदोलनों में लगातार शामिल कर इनकी मांगों के लिये आवाज उठाते रहे है।
इन दावों प्रतिदावों के बीच दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव की रमन सिंह को भेजी गई इस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आया है।
सब पत्र दिखा रहे हैं, लेकिन जूदेव की चिटि्ठयों को रमन सिंह भी भूल गए
इस मामले में सभी दल और राजनीतिज्ञ पत्र दिखा रहे हैं। बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट का फैसला सार्वजनिक होने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री को लिखा पत्र जारी किया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी दो चिटि्ठयां लेकर हाजिर हो गए जिसमें उन्होंने मात्रात्मक गलतियां सुधारने की मांग उठाई थी। भाजपा नेता नंद कुमार साय भी 2019 में लिखी एक चिट्ठी लेकर सामने आए। लेकिन दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव की 2008 में लिखी चिट्ठी को रमन सिंह भी भूल गए। यह भी नहीं बताया कि उनके पत्र पर क्या कार्रवाई हुई। दिलीप सिंह जूदेव के बाद युद्धवीर सिंह जूदेव ने भी दिसम्बर 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को पत्र लिखा था। इसमें 18 जातियों के साथ मात्रात्मक त्रुति से हो रही दिक्कतों का जिक्र था। जूदेव को इस पत्र का भी कभी कोई जवाब नहीं मिला।
आदिवासी समाज के कई प्रतिनिधि गुरुवार को राज्यपाल अनुसूईया उइके से मिलने भी पहुंचे थे।
राज्यपाल बोली, सब ने प्रयास किया था, लेकिन श्रेय तो करने वाले को
इधर राज्यपाल अनुसूईया उइके ने बड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा, जो व्यक्ति निर्णय करता है श्रेय तो उसी को जाता है। इसका सबसे अधिक श्रेय प्रधानमंत्री को देती हूं। उन्होंने कहा, ऐसे फैसलों में सभी का योगदान रहता है। सभी ने प्रयास भी किया था। इसमें सभी का सहयोग और सभी का प्रयास है। इसमें सामाजिक संगठन भी शामिल हैं। इन सबके लिए वे भी बधाई के पात्र हैं।
सभी देख रहे हैं राजनीतिक फायदा-नुकसान
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय में मात्रात्मक गलती की वजह से जाति प्रमाणपत्र नहीं बन पाने का मुद्दा करीब डेढ़ दशक पुराना है। प्रदेश में आदिवासी समाज आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है। एक सामान्य अनुमान है कि जिन 12 जातीय समूहों को मात्रात्मक गलतियों को मान्य कर जनजातियों की सूची में शामिल किया जा रहा है, उनकी आबादी 10 लाख होगी। यह बड़ा मतदाता वर्ग है। पिछले चुनाव में आदिवासी बहुल दोनों संभागों में सभी सीटें गवां चुकी भाजपा केंद्र सरकार के इस फैसले के सहारे अपनी जमीन सहेजने की कोशिश में है। वहीं कांग्रेस अपने कोर वोटर के बीच ऐसा संदेश नहीं जाने देना चाहती कि उसने उनके लिए कोशिश नहीं की।