नईदिल्ली I दिल्ली हाई कोर्ट ने अपहरण और हत्या के प्रयास की आरोपी एक गर्भवती महिला को तीन महीने की अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि प्रत्येक गर्भवती महिला मातृत्व के दौरान संविधान द्वारा प्रदत्त गरिमा की हकदार है. न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि हिरासत में बच्चे को जन्म देना न केवल मां के लिए पीड़ादायक होगा, बल्कि इससे बच्चे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
अदालत ने 18 अगस्त को दिए अपने आदेश में कहा, “किसी महिला का गर्भवती होना उसकी विशेष परिस्थितियां हैं और हिरासत में बच्चे का जन्म होना न केवल मां के लिए पीड़ादायक होगा, बल्कि बच्चे पर भी इसका हमेशा के लिए प्रतिकूल असर होगा, खासकर जब भी उसके जन्म के बारे में सवाल किया जाएगा. हर गर्भवती महिला मातृत्व के दौरान भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत गरिमा की हकदार है.”
जन्म लेने वाले बच्चे के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए”
कोर्ट ने कहा, “अदालत से अपेक्षा की जाती है कि जब तक याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने में कोई गंभीर खतरा न हो, तब तक जन्म लेने वाले बच्चे के हितों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.” अदालत ने कहा कि जेल के नियमों में यह भी कहा गया है कि जहां तक संभव हो, अस्थायी रिहाई की व्यवस्था की जाएगी ताकि किसी महिला कैदी का जेल के बाहर अस्पताल में प्रसव कराया जा सके.
“महिला अंतरिम जमानत पर रिहा किए जाने की हकदार”
कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर संबंधित जेल में प्रसव की सुविधा उपलब्ध नहीं होने और याचिकाकर्ता को प्रसव के लिए दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में रेफर किए जाने की बात भी कही. अदालत ने आदेश में कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता गर्भवती महिला है और उसका प्रसव होना है. ऐसे में वह तीन माह के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किए जाने की हकदार है.” कोर्ट ने जमानत के लिए 20 हजार के जमानती बांड और इतनी राशि का एक मुचलका देने की शर्त रखी.